मृत्यु से अमर तक की रहस्य
May 03,2018 | Bapuji Article Five Element

सृष्टि एक रहस्य है और इस रहस्य को समझने के लिए कई गुरु, ऋषि, संत, फकीर, अवतार (हिंदू परंपरा में) समय-समय पर पृथ्वी पर आए थे। ऋषियों, मुनियों, संतों, अवतारों आदि द्वारा प्रसारित ज्ञान से मानव समाज बहुत ही उजागर हुआ है और समाज की संस्कृति तदनुसार परिवर्तन होता गेया। रहस्य अंधेरे के समान हे, लेकिन अंधेरे जब प्रकाश के माध्यम से सुलझाया जाता है तो इसे ज्ञान कहा जाता है। इसलिए रहस्य के विभिन्न स्तर और ज्ञान के विभिन्न स्तर हैं। तो रहस्य का अंत कहाँ है? और ज्ञान का अंत कहाँ है? इस स्थूल संसार मे मृत्यु अनीबार्य हे ये सभी जानते हुए अंजान बने हुएँ है ओर मृत्यु के इंतेजार मे बैठे हुए हैं।
सभी धर्मों ने एक बात पर महत्त्व दिया हे और वह हे आत्मा। सभी अवतार (हिंदू परंपरा में) और सभी गुरुओं / संन्यासी / फकीर / ऋषि आदि जो धरती पर आए, वे भी आत्मज्ञान पर जोर दिया? तो सभी जीवित प्राणी के दो भाग हे उस में से एक दिखता है, अर्थात् शरीर और अन्य अदृश्य है वो हे आत्मा। आत्मा शरीर का संचालन कर रही है लेकिन जैसा कि सभी जीवित प्राणी अपनी आत्मा से अवगत नहीं हैं, लेकिन उनके शरीर के बारे में पूरी तरह से अवगत हैं। तो शरीर के बारे में जागरूकता को शरीर चेतना या स्थूल चेतना कहा जाता है और आत्मा की जागरूकता को आत्म चेतना कहा जाता है। उपरोक्त पहलू को श्रीमद भागवत गीता, बाइबल, कुरान, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जैसे सभी पवित्र आध्यात्मिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित किया गया है और विभिन्न युगों (चार युग) में विभिन्न घटनाओं के रूप में पुराणों (हिंदू अवधारणाओं में आध्यात्मिक ग्रंथों) में भी समझाया गया है। मानव भी पृथ्वी की अन्य जीबीत प्राणी की तरह है, जब तक कि वह उसकी आत्मा से अवगत नहीं हुआ हैं। येहुदी, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम (मुस्लिम) जैसे धर्मों पिछले 3000 से 4000 वर्षों मे अस्तित्व में आया हे, लेकिन उस अवधि से पहले धरती पर विभिन्न धार्मिक समूहों या विभाजनों की कोई ऐसी अवधारणा नहीं थी। लगभग 5000 साल पहले मानव जाति पर्यावरण के साथ संतुलन में रह रहा था और वह उनका धर्म था, जो स्पष्ट रूप से हमारे हिंदू पवित्र ग्रंथों(वेद, उपनिषद, पुराणों) में दर्शाया गया है। हिन्दू परंपरा में वेद, उपनिषद, पुराणों उस समय ऋषियों / मुनियों द्वारा कल्पना की गई थी जो उस समय के आध्यात्मिक वैज्ञानिक थे। तब ऋषियों और मुनियों के पास प्रचण्ड आत्मशक्ति थी जिसके द्वारा वे अपनी चेतन शक्ति को बहुत उच्च स्तर तक ले जा सकते थे जो कि इस सौर मंडल या आकाशगंगा से भी परे जा सकते थे और वहाँ की सृष्टि को देख सकते थे। इस वजह से वे हिंदू ग्रंथों (वेद, उपनिषद, पुराणों) में सौर मंडल और आकाशगंगा के सृजन की इतिहास और भूगोल के विवरण समझाया गया हे बिभिन्न कहानी के माध्यम से। परंतु बर्तमान समय मे मानब आत्मा मे इतना शक्ति नहीं है की वो उपरक्त ग्रंथों की मूल अर्थ को समझ पाए। आधुनिक मनुष्य समाज उन ग्रंथोंको (वेद, उपनिषद, पुराणों) पौराणिक कथा कहते हें और उसीमे लिखी गेई आध्यात्मिक बिज्ञान को समझ नहीं पा रहें हे।जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया , समय समय पर शक्तिशाली व्यक्तित्व जो की दिव्य शक्तियों के साथ संपन्न थे, धरती पर आने लगे और कई धर्मो और कई आध्यात्मिक संस्था इस धरती के ऊपर स्थापन किए। उन शक्तिशाली व्यक्तित्व को इस मानव समाज मे धर्म पिता या परमेश्वर के दूत या पैगामबर कहा गेया। मानव समाज में आध्यात्मिक ज्ञान, शांति, सद्भाव स्थापित करना सभी धर्मों के आधारभूत सिद्धांत है।
लेकिन आज अधिकतम संघर्ष केवल धर्म की वजह से है और अभी तक धार्मिक विवाद के कारण अधिकतम युद्ध हुए हैं और अधिकतम संख्या में केवल धार्मिक मतभेदों के आधार पर ही मृत्यु हो चुकी है और हो रही है। आजकल लोगों के एक विशेष समूह , जो धर्म के अंतर में या विचारों में अंतर के नाम पर क्रूरता से दूसरे समूह लोगों को मारने के लिए झिझक नहीं रहे हैं, उन्हें आतंकवादी कहा जाता है और यह दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। कई धर्मों के अलावा, वर्तमान में भारत में कई गुरु या आध्यात्मिक स्वामी हैं और साथ ही अन्य देशों में भी आध्यात्मिक विज्ञान की शिक्षाओं के अपने संस्करण फैले हुए हैं, जो लाखों लोगों द्वारा उनकी पसंद और समझ के अनुसार अनुकरण कर रहें हैं। आजकाल अपने भगवान या गुरु को निष्ठा का सबूत दिखाने के लिए अधिकतर राशि भगवान के नाम पर मंदिरों में और आध्यात्मिक संस्था (आश्रम कहा जाता है) मे दान के रूप में दिया जाता है। यदि यह सभी दान में एकत्र हुए सभी निधियों को जोड़ा जाए तो भारत को गरीबों के विकास के लिए कोई आर्थिक सुधार की आवश्यकता नहीं होती है। बहुत सारे धर्मों, गुरुओं, मंदिरों के बावजूद अपराध में वृद्धि हो रही है, असहिष्णुता बढ़ रही है, और भौतिकवादी जीवन बढ़ रहा है। कोई भी शांति में नहीं है, लेकिन हर बौद्धिक(intellect) शांति की बात कर रहा है और शांति स्थापित करने के लिए अलग अलग सिद्धांत प्रदान कर रहा है। कुछ महिलाएं सशक्तिकरण के लिए काम कर रही हैं, कुछ समूह किसानों के लिए काम कर रहा है, कुछ बच्चों के लिए कर रहें है, कुछ पर्यावरण के संरक्षण के लिए कर रहें हैं, लेकिन अगर कोई दैनिक समाचार पत्र या समाचार चैनल को देखता है तो अपराध का प्रकार इतनी क्रूर और क्रूरतापूर्ण है कि एक शांतिप्रिय मानव के दिल मे डर, अनिश्चितता भर देता है। आजकल मानव सेवा के नाम पर बहुत सारे अस्पतालों निर्माण किया जा रहा है, लेकिन मौत के भय को उत्प्रेरित करके मानव के मनोविज्ञान से छेड़छाड़ करके कारोबार करने का एक साजिश है। आज के समय मे सभी सफल व्यवसाय आधारभूत दो चीज़ें पर निर्भर हे पप्रथम शान तथा आरामदायक जीवन की प्रोलोभन द्वितीय मृत्यु के डर। आज के शिक्षा प्रणाली ( मेडिकल,इंजीन्यरिंग,मैनेजमेंट) उपरक्त चिंता धाराओं को बढ़ावा देता है जो इस उपोरक्त कार्य मे माहीर होगा उसिकों होशियार माना जाएगा। इसलिए आज के समयमे इस धरा के ऊपर किसिकों भी सफल ब्यबसायिक बनने के लिए दो चीजों मे सक्षम होना चाइए प्रथम लोगों को मृत्यु के दर दिखाना द्वितीय लोगों को शान तथा आरामदायक जीवन की प्रोलोभन दिखाना। आज के मानव समाज स्थूल दुनिया मे इतना डूबा हुआ है की उसको आत्मा की अस्तित्व एबम उसकी दिव्यता के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकता हे। स्थूल चेतना या बुद्धि का मतलब हे की वो मनुष्य सिर्फ जो इस चर्म चखयु मे दिखता हे उसिके ऊपर बिस्वास करता हे। ये स्थूल दुनिया सीमित हे। जिसकी एक सीमा हे वो असीमित नहीं हें उसिकों हम हद कहतें हैं। जो असीमित हे और ये स्थूल दुनिया के दाएरे से बाहर हे वो बेहद हे। बेहद को हद की बिपरित समझ सकते हे जो अनंत हे। इसलिए स्थूल चेतना या बुद्धि बाला मनुष्य के बिचार या सोच सीमित होता हे। आज के समय मे इतना ज्यादा जन्स्नख्या मे बृद्धि हो गयी हे की ये स्थूल दुनिया मे एक छोटी सी चीज पाने के लिए इतना प्रतिस्पर्धा हे की हर मनुष्य अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा हे।ये स्थूल दुनिया सीमित हे और हर बस्तु मे अभाब हे और ये असुरक्षा का जन्मदाता हे। अपना अस्तित्व खो देना का डर,असुरक्षा महसूस करना,स्थूल भोग करने का लालसा सभी प्रकार की अपराध या क्रूरता का मूल कारण हे। उपरक्त सभी कारकों का जन्मदाता स्थूल दुनिया ही है। इसिकों हद की दुनिया कहा जाता हे जहां हम रहने के लिए इतना संघर्ष कर रहें हे। हम सभी सुखों की खोज इसी दुनिया मे कर रहें हैं। हम जब स्थूल दुनिया के सीमा को पार करेंगे तो असीमित दुनिया मे कदम रखेंगे उसको बेहद की दुनिया कहेंगे। उसके लिए बेहद की ज्ञान चाइए जैसे हम स्थूल दुनिया मे मेडिकल या इंजीन्यरिंग का पढ़ाई करते हैं।
सभी आध्यात्मिक ग्रंथ, धार्मिक पिता, संत, फकीर ने पृथ्वी पर शांति , प्रेम स्थापन करने की कोशिश की, लेकिन मानव प्रजातियों की सीमित( हद की) समझ के आधार पर धरती पर विभाजन होते गेया और अभी भी जारी हे। अंत में अब इस धरती में कई सीमाएं हैं वो धर्म, जाति, भाषा, आदि चीजों पे आधारित हे। विश्व की आबादी एक खतरनाक दर से बढ़ रही है जो वर्ष 1817 में लगभग 9 8 करोड़ थी, वर्ष 1917 में 1 9 0 करोड़ पहुंची , वर्ष 2017 में 750 करोड़ हो गेई और भारत की आबादी भी उसी हिसाब से बढ़ति रही और आज भारत पृथ्वी मे द्वितीय स्थान मे हे। जनसंख्या में वृद्धि और प्रकृति द्वारा प्रदत्त सीमित भौतिक संसाधनों के साथ पृथ्वी पर मानव अस्तित्व का बना रहना चिंता की बिषय हे जो की सभी स्तर की बौद्धिक समझ रहें है लेकिन कुछ कर नहीं पा रहें हैं।जिस तरह हम आजकी जीबन ब्यातित कर रहें हैं उस हिसाब से ये धरती 100 साल से ज्यादा कायम नहीं रह सकता हे, हाल ही में एक प्रसिद्ध बैज्ञानिक जिनका नाम Stephen Hawking ये शब्द बोले थे। तब हम कहाँ जाएंगे? आउर ये लड़ाई किसकेलिए ?
कोई भी मंदिर, चर्च, या मस्जिद या कोई आध्यात्मिक प्रतिष्ठान या कोई गुरु या वैज्ञानिक पृथ्वी पर इस मानव जाति को विलुप्त होने से बचाने में असक्षम होगा यदि हम इस तरह से जीवन जीबन ब्यातित करेंगे। हिंदू पुराणों में यह कहा जाता है कि वर्तमान समय को कलियुग कहा जाता है और इसकी अवधि लगभग 4,32,000 साल है, इसके केवल 5000 साल बीत चुके हैं, इसलिए कलियुग में और 4,27,000 साल बचे हैं। यह भी कहा जाता है कि कलियुग के अंत में कल्कि अवतार (हिंदू भगवान में विष्णु का अवतार) पृथ्वी पर प्रकट होते है और सभी असुरों या राक्षसों या नकारात्मक लोगों को दमन करते है और केवल संत या सकारात्मक लोग पृथ्वी पर सत्य युग स्थापित करने के लिए बने रहेते हे। अगर वर्तमान परीस्थिति कायम रहेता हे फिर 4,27,000 साल बाद कल्कि अवतार पृथ्वी पर आएंगे तो पृथ्वी अस्तित्व में नहीं होगी इसलिए कल्कि अवतार को अपने मिशन को पूरा करने का कोई मौका नहीं मिलेगा। इसलिए यह पृथ्वीपर एक महत्वपूर्ण समय चल रहा है जब परिवर्तन होना जरूरी हे, पृथ्वीके अस्तित्व के लिए। जब भी परिवर्तन होता है, परिवर्तन की सुविधा के लिए कुछ नया विचार के साथ नया व्यक्तित्व पृथ्वी पर अस्तित्व में आते है। यह सृष्टि का नियम है जो समय और स्थान के साथ बदलता है।
हिंदू अवधारणा में समय चक्र को चार युग मे बीभक्त किया गेया हे जैसे कि सत्य युग (स्वर्ण युग), त्रेता युग (सिल्वर एज), द्वापर युग (कॉपर एज) और कली युग (आयरन आयु), ये समय चक्र स्वयं को दोहोरता रहता हे जबतक एक ब्रह्मा के समय काल का अंत न हो जाए। पृथ्वी के ऊपर युगों का परिवर्तन पर्यावरण की स्थिति (धरती, वायु, जल, अग्नि और आकाश जैसे 5 तत्व की शुद्धता) और धरती पर मानव आत्मा की मनोवैज्ञानिक / मानसिक स्थिति के आधार पर होता है। प्रत्येक युग के अंत के साथ पृथ्वी की स्थिति खराब हो जाती है और खराबी का शिखर काली युग में पहुंच जाता है। समय के साथ, सौर मंडल, आकाशगंगा, ब्रह्मांड, जैसे अंतरिक्ष में विभिन्न स्तरों में सृजन और विघटन का कानून बदलता रहता हे। एक विशेष समय और स्थान पर निर्माण / विघटन के कानून को समझने के लिए आत्मा में गहरा अंतर्दृष्टि और जबरदस्त शक्ति होनी चाहिए। धरती पर यदि कोई मृत व्यक्ति अब जीवन में वापस लाया जाए जो इस धरती पर 100 वर्ष पूर्व था , तो आज की सामाजिक संरचना और प्रौद्योगिकी के विकास, पर्यावरण में शुद्धता की गिरावट आदि के कारण मानव जाति के जीवन के तरीके को समझ नहीं पाएगा । परिवर्तन इस धरती के जीवन का एक अपरिबर्तनीय नियम हे। यहां उल्लेख करने योग्यो है कि अवतार भगवान राम पृथ्वी पर त्रेता युग के अंत में आए थे, जब त्रेतायुग द्वापर युग में परिबर्तन हो रहा था। त्रेता युग मे पृथ्वी के ऊपर जीबन शैली तथा निर्माण / विघटन के कानून,द्वापर युग से पूरी तरह अलग था। त्रेता युग मे लोग शांति प्रिय थे जैसे की उस समय धन, संपती, जमीन के लिया कोई लड़ाई होते हुए नहीं देखा गया। रामायण मे जब श्री राम बनबास गए तो उनके पीछे भरत भी बन मे गए और श्री राम को लौट आने के लिए निवेदन किए थे जबकि द्वापर युग में एक छोटीसी जमीन के टूकडे के लिए महाभारत युद्ध हुआ था। इसे पता चलता है समय के साथ कितना बदलाओ आता हे।जब त्रेता में एक भाई दूसरे भाई के लिए सब कुछ छोडने को तयार था द्वापर मे एक जमीन के लिए एक भाई दूसरे भाई को मारने के लिए तत्पर था। ऐसा क्या हुआ धरती के ऊपर जो की एक भाई दूसरे का दुश्मन बन गया। आज के समय मे कोई किसिका भाई ही नहीं रहा। जब आप समझ जायेंगे की ये परिबर्तन क्यूँ हो रहा है तो आप ये समझ जाएंगे की अवतार धरती पर क्यूँ और कब आते है। त्रेता युग मे श्री राम के द्वारा कौन काम करबा रहा था।लोग शरीर को भगबान मान लेते हे जो की नश्वर हे। जैसे त्रेता युग का अन्त हुआ द्वापर युग का आगमन हुआ और श्री राम नहीं रहें। द्वापर युग के अन्त मे श्री कृष्ण का आगमन हुआ तब इस धरती मे मानव समाज की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी ये सब महाभारत मे पढ़ा जा सकता हैं। श्री कृष्ण ने द्वापर युग मे बहुत सारे चमत्कार किए थे तथा धर्म की स्थापना के लिए उन्होने अपनी पूरी शक्ति लगाई थी। द्वापर युग मे श्री कृष्ण के द्वारा कौनसी शक्ति इतना चमत्कार कर रहा था। श्री राम को मर्यादा पुररूषोत्तम कहा जाता है जबकि श्री कृष्ण को छलिया कहा जाता है।ये दोनों अवतारों के अंदर एक ही शक्ति काम कर रहा था। लेकिन एक को हम मर्यादा पुरुषोत्तम कह रहें हैं ओर एक को छलिया कह रहें हैं। इसीसे पता चलता है समय के साथ अवतार बदल जाते हैं और उनका काम करनेका तरीका भी बदल जाता है क्यूँ की पृथ्वी के ऊपर बयुमंडल बदल जाता है जो की पाँच तत्त्व के (पृथ्वी, जल, बयु, अग्नि, आकाश) होते हैं। ये बयुमंडल के शुद्धता किसके ऊपर निर्भर हे? क्या ये बयुमंडल आपने आप बदल जाता हे? ये जो शक्ति समय समय पर धरती के ऊपर किसी मनुष्य के शरीर मे प्रकट होता हे वो आज कहाँ हे। क्या आज के समय इतना अच्छा हे की कोई परिवर्तन के जरूरत नहींन है? आज जो सब घाटनायें पृथवी के ऊपर घट रहा हे वो सब क्या मानव समाज के लिए अच्छा हे। यहाँ ये सब बोलने की जरूरत नहीं हैं, आप न्यूज़ पेपर या न्यूज चैनेल मे कैसे कैसे न्यूज़ देख रहें हैं उसीसे आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं। आज हर आदमी दौड़ मे लगा है बुलंदी पे खड़े होना चाहता है , उसको सब पहचाने , उसके पास सबसे ज्यादा पैसा होना चाइए। ये सब हासिल करने के के लिए आजकी मानव कुछ भी कर सकता हे। हम इस सबसे ऐसे आदत हो गया है की सभी गलत चीज हमें आछा लाग्ने लगा है। जैसे की टेलीभिजन (TV) पे कितना भी खराब (अनैतिकता और ब्याभिचार से भरपूर) सेरीएल हो फिर भी हम आपने आप को देखनेसे रोक नहीं पाते हें ये जानते हुए भी की ये समाज को बिगाड़ रहा हे।और आज मीडिया मे वही सेरीएल या न्यूज़ चैनल का सबसे ज्यादा कमाई हे। कोई अच्छा चीज दिखाने या लीखने के लिए कोई तयार नहींन हे क्यूँ की वो बिकता नहीं ओर जो अछे चीज दिखाना या सम्झना चाहता हे उसके पास पैसे का ताकत नहीं। आज के समय मे इतने मंदिर बन चुके हैं ओर इतने धर्म गुरु आ चुके हैं, और ये सब अपनी अपनी संस्था चलाने मे और मेम्बर बढ़ाने मे इतने ब्यस्त हैं की वो भी एक प्रतिस्पर्धा मे बदल चुका है। जैसे की सबसे ज्यादा पैसा कमानेबाला धार्मिक या आध्यात्मिक संस्था कौन सा हे और कहाँ सबसे ज्यादा लोग जाते हैं, वो सबकी आधार पर उस गुरु या संस्था की मान्यता बढ़ जाता है। जैसे लग रहा हे की मानव समाज को देख कर भगवान भी रह नहीं पाए और वो सोचे की मे भी प्रतिस्पर्धा मे उतर जाता हूँ। इसे ये लगता हे जैसे मूल धर्म स्थापक या आध्यात्मिक गुरु को इस धरती से जाने के बाद उनको अनुसरण करने बाले इस हद की माया मे फस जाते हें और बेमतलब की कम मे ब्यास्त रहते हें। जबकि दुनिया दिन पर दिन पतन की और जा रहा हे।
जो एक ही शक्ति जिसको हम “सर्ब शक्तिमान” या “परम पिता” या “बेहद की बाप” कह शकते हैं और जो बार बार धरती मे समय समय पर धरती के ऊपर किसी ना किसी शरीर या अवतार के द्वारा काम कराता रहता है जैसे की त्रेता मे श्री राम के द्वारा और द्वापर मे श्री कृष्ण के द्वारा धरती मे सुधार करने की प्रयत्न किया। लेकिन फिर भी धरती की हालत खराब से खराब होते गेया जैसे की त्रेता मे जो स्थिति थी वो द्वापर मे और बिगड़ गया और कलियुग बहुत बिगड़ गया। हम मानब जाती के बुद्धि स्थूल दुनिया या हद मे रहता है इसलिए हम शरीर तथा इस दुनिया की मान शान को सब कुछ मानलेते है और हम सबको अपने नजर से देखते है और अपने जैसे मानते है। इसलिए श्री राम, श्री कृष्ण जब धरती पे आए तो, सिवाय कुछ गिने चुने अत्यधिक आध्यात्मिक रूप से विकसित ऋषि या मुनि को छोड़ के सभी लोग श्री राम, श्री कृष्ण के अवतार कार्य के बारे मे अबगत नहीं थे जिसके लिए इतने सारे लड़ाइयाँ हुई और हम सब कलियुग मे आ पहुंचे। इसीलिए ये बोला जाता हे आप नहीं चाहेंगे तो भगबान भी आपका मदद नहीं करसकता। इसकी जमीदार हमारी स्थूल (हद) सोच या स्थूल बुद्धि हे जो की बिज्ञान मे बहुत निचले स्तर की कंपन या vibration कहा जाता है। जबतक हमारा बुद्धि हद या स्थूल दुनिया मे फसा रहेगा तो हमे नीचे गिरने से कोई रोक नहीं शकता। इसलिए श्रीमद भगवत गीता के निनमालिखित सलोक सबकुछ समझता है।
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् ।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥ ९-११॥
जो लोग मूर्ख हैं वो लोग मेरा मनुष्य शरीर को देखकर मेरा अबज्ञा या उपहास करते है और वो लोग मेरा सर्ब शक्तिमान या मेरा दिव्य स्वरूप को सोच या समझ नहीं पाते जबकि मे सारे सृष्टि की संचालन करता हूँ।
उपरक्त श्लोक मे बहुत सीधा साधा शब्द मे बोला गेया हे जो लोगो की सोच हद( स्थूल दुनिया) मे पड़ा हुआ है वो कितना भी धनबान या समाज मे प्रतिष्ठित या शिक्षित ब्यक्तित्व हो , वो मूर्ख हे क्यूँ की वो परम पिता या सर्ब शक्तिमान के दिव्य स्वरूप तथा सृष्टि के संचालन करता स्वरूप को पहचान नहीं पा रहा हे। श्रीमद भगवत गीता मे ही इस सृष्टि के पतन के कारण भी बताया गेया है। जब त्रेता मे श्री राम थे तो उनको मानव समाज समझ नहीं पाया उसका नतीजा हे की द्वापर मे जाना पड़ा जब धरती के ऊपर स्थिति और खराब हुआ। श्री राम को यदि कोई द्वापर मे खोज करेगा तो क्या वो मिलेंगे? ऐसे ही यदि कोई श्री कृष्ण को कलीयुग मे खोज करेगा तो क्या वो मिलेंगे? जब जैसी परिस्थिति होती है परम पिता या बेहद की बाप अपनी अनंत शक्तियों से एक छोटा सा अंश द्वारा किसी भी आत्मा तथा शरीर के द्वारा अपना काम धरती के ऊपर करबा लेता है। जैसे ही श्री राम या श्री कृष्ण के अवतार कार्य का अंत हुआ तो उन्हे भी धरती से जाना पड़ा तो वो कैसे मिलेंगे। जब थे तो समझ नहीं पाये जब चले गए तो हम लोग उनकी मंदिर बनाकर उनको मंदिरो मे , रामायण , महाभारत जैसे ग्रन्थों मे खोज रहे है तो वो काहाँसे मिलेंगे।क्यूँ की हमारे बुद्धि स्थूल दुनियामे सीमित हे इसलिए जो चर्म चक्षयु मे दिखता हे उसिकों बिस्वास करते हे ओर उसिकों ही आज के समय मे बैज्ञानिक दृष्टिकोण बोलते हैं।
जैसे की ऊपर बताया गया की एक युग जब दूसरे युग मे परिवर्तन होता हे तो एक ऐसी ब्यक्तित्व धरती पर दिव्य शक्ति के साथ आता हे जो की पूरे सृष्टि को बदलने की ताकत रखता है। वो उस समय की परिस्थिति और वो दिव्य ब्यक्तित्व की ऊपर निर्भर करता हे वो कैसे परीवर्तन करेगा। अभी जो समय चल रहा है उसको पुरुषोत्तम संगम युग कहते हैं और अभी परम पिता या बेहद की बाप या सर्ब शक्तिमान की पूरी शक्ति धरती के ऊपर परिबर्तन की तयारी कर रही है। ये समय बहुत महत्वपूर्णा हे। जैसे की ब्रह्म कुमारी संस्था इस बात को पुष्टि कर रही हे। ये बेहद के बाप का क्या अर्थ हे? जब हम हद बोलते है तो एक सीमा को दर्शाता हे। स्थूल दुनिया के एक सीमा हे जैसे की इस दुनिया के सारे चीज एक न एक दिन खतम होने बाला हे चाहे वो अपना शरीर हो या प्रकृति का कोई भी अंश जैसे खणीज सम्पदा हो।एक निर्धारित समय के अंदर ये सारे स्थूल दुनिया की अंत हो जाता हे। हद के बिपरित बेहद हे जो की कभी खतम नहीं होने बाला हे जिसकी कोई सीमा नहीं हैं। जैसे किसी के भी जन्म दाता को उसकी बाप बोला जाता है ऐसे ही इस बेहद की रचयिता को उसकी बाप बोला जाता हे। हमे जो सृष्टि अपनी इस स्थूल चक्षयु मे देख रहें हे उसके परे की जो सृष्टि हे वो अनंत हे उसिकों बेहद की दुनिया बोला जाता हे। इसको समझने के लिए श्रीमद भगवत गीता के 11 वे अध्याय के 7 नंबर ,8 नंबर तथा 47 नंबर श्लोक की सहायत लेता हूँ। जिसमे श्री कृष्ण आपने विराट रूप को अर्जुन के सामने प्रकट किए हैं।
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि ॥ ११-७॥
न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् ॥ ११-८॥
हे निद्रा को जीतने बाले अर्जुन , मेरे इस शरीरके एक छोटेसे हिस्सा मे चराचरसहित सम्पूर्ण जगत को अभी देख ले। इसके सिबाय तू और जो कुछ भी देखना चाहता हे वो भी देख ले।
परंतु तू इस अपनी चर्म चक्षयु से मुझे देख हि नहीं सकता, इसलिए मे तुम्हें दिव्य चक्षयु देता हूँ , जिससे तू मेरी ईश्वरीय विराट या असीमित सामर्थ्य देख।
श्रीभगवानुवाच ।
मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं
रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् ।
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं
यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् ॥ ११-४७॥
​श्री भगबान बोले हे अर्जुन मैंने प्रसन्न होकर अपनी सामर्थ्य से मेरा यह अत्यंत श्रेष्ठ , तेज स्वरूप , सबका आदि और अनंत बिश्वरूप तुझे दिखाया है , जिसको तुम्हारे सिबाय पहेले किसिने नहीं देखा हे।
​ ये उपरक्त श्लोक से ये पता चलता हे की ये सृष्टि बहुत बड़ी हे ये हमारे स्थूल या हद की सोच के बाहर हे। अब बिज्ञान इस बात की प्रमाण दे रही हे की हमारे जैसे अनंत सौर मण्डल हे वो सब सौर मण्डल हमारे आकाशगंगामे घूम रहें हे। ये भी हे की असंख्य आकाशगंगा ब्रम्हांडमे घूम रहें है। बिज्ञान ये भी आज प्रमाण दे रहा हे की अनंत कोटी ब्रम्हांड अंतरिक्ष मे घूम रहा है। ये तो सिर्फ आजतक की बैज्ञानीकों की अनुसनधान हे। ये अकल्पिनीय सृष्टि को बेहद की दुनिया कहा जाता है। हम जिस धरती पर खड़े हैं ये एक सुई की नोक बराबर हे। इसलिए श्री कृष्ण अर्जुन को ये कहा की मेरा एक छोटे से हिस्से से ये चराचरसहित सम्पूर्ण जगत ब्याप्त हे। ये भी कहा की ये तू चर्म चक्षयु मे नहीं देख सकता इसकेलिए दिव्य चक्षयु चाइए और दिव्य चक्षयु सिर्फ परम पिता या बेहद की बाप की कृपा से मिल सकता हे। वो भी तभी मिलेगा जब वो प्रसन्न होगा। इससे ये बात बहुत साफ होता है की ये बेहद की सृष्टि अनंत हे और हम उसके समीप कुछ भी नहीं हैं लेकिन हम लोग सबसे बड़ा बनने के लिए दिन रात लगे हुए हें ओर उसको हासिल करने के लिए किसिकों भी हम परिशान कर सकते हैं।
आज के समय मे हम भगबान को शास्त्रों मे, पवित्र ग्रंथ मे या मंदिरों मे या किसी दरगाह या समाधि मे खोज कर रहें है।जब हम निराश होते हैं तो कहते है कल्कि अवतार कली युग के अंत मे आयेगा और सभी दुष्ट प्रब्रुती के लोगो की संहार करेगा वो भी कब 4,27,000 साल के बाद। तो जो लोग भगबान को मानते हैं और मर्यादा मे रहते है और कोई ब्याभिचार या छल नहीं करते है तो उनको इस दुनिया के लोग मूर्ख कहते हैं क्यूँ की
उन्हे पता है की भगबान आयेगा भी तो इतने साल के बाद का तबतक देखा जाएगा। कोई भी भगबान को या बेहद की बाप को बर्तमान मे खोज करने की कोशिश नहीं करता क्यूँ की किसिकों भगबान नहीं चाइए ये बात भी श्रीमद भगवत गीता मे बहुत स्पष्ट अध्याय 7 श्लोक 16, 17 मे कहा गया हे।
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ ७-१६॥
​ हे भरतबंशियों मे श्रेष्ठ अर्जुन पबीत्र कर्म करनेबाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी – ये चार प्रकार के मनुष्य मेरा भजन करते हैं अर्थात मेरे शरण मे आते हैं ।
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥ ७-१७॥
​ उन चार प्रकार के भक्तोंमे मुझमे निरंतर लगा हुआ अनन्य भक्तिबाला ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ है क्यूंकी ज्ञानीको में अत्यंत प्रिय हूँ और वह मुझे अत्यंत प्रिय हे।
उपोरक्त श्लोक से ये बहत स्पष्ट हुआ की चार प्रकार की लोग भगबान की शरण मे आते हैं एक है अर्थार्थी उसको अर्थ चाहिए , दूसरा आर्त उसको परिशनी से मुक्ति चाइए , तीसरा जिज्ञासु अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता हे , चौथा ज्ञानी जो सिर्फ भगबानको ही खोज करता हे। इसलिए ये भी हे की भगबान किसिकों निराश नहीं करते लेकिन वो ज्ञानी को ही प्यार करते हैं क्यूंकी सिर्फ वो भगबान को पाना चाहता हे। जो सच्चा ज्ञानी होगा वो निरंतर परमात्मा का ही सिर्फ खोज करेगा क्यूंकी स्थूल चीज उसके लिए मूल्यहीन होगा इसलिए ज्ञानी भगबान को वर्तमान मे ही खोज करेगा और सिर्फ उसिकों भगबान वर्तमान मे ही मिलेंगे। बाकी तीन प्रकार के लोगोंकों भगबान से ज्यादा अपनी चिंता ज्यादा हे तो ये स्थूल दुनिया मे भगबान को खोज करेंगे जैसे की मंदिर मे या मस्जिद मे या दरगाह मे या समाधि मे या शास्त्रों मे, पवित्र ग्रंथ मे क्यूँकी पहले उसकी काम होनी चाइए उसको कोई जल्दी नहीं क्यूंकी भगबान आने के लिए 4,27,000 साल बाकी हे। ज्ञानी भक्त भगबान को वर्तमान मे खोज करेगा और वो सत्य की पीछे जाएगा ओर किसीभी स्थूल छीजो से आपने आप को दूर रखेगा और वो अदृश्य अनंत शक्ति जो की अनंत सृष्टि की संचालन कर रहा हे उसिके साथ आपने संबंध रखेगा। जो अज्ञानी हे उसको भगबान कभी नहीं चाइए वो तो एक पशु जैसा हे उसकी एक उदाहरण यहाँ दिया जा रहा है। एक बार द्वापर युग मे एक ज्ञानी भक्त श्री कृष्ण को पूछा की आप तो अनंत कोटी ब्रह्मांड की मालिक हो और ऊपर की दुनिया तो बहूत अच्छा हे जहां कोई दुख नहीं है ओर वहाँ ऐसी कोई जगह की कमी नहीं है फिर ये धरती पे ये सारी प्राणी को क्यूँ नहीं वहाँ ले जाते हो इस धरती मे इतना कष्ट हे और दिन ब दिन बढ़ रहा हे। श्री कृष्ण बोले कोई एक भी जाने के लिए तयार हो जाए तो मेरा काम धरती पे आसान हो जाएगा। तभी एक सूअर वहांसे जा रहा था और श्री कृष्ण वो सूअर को पुछे की क्या तुम ऊपर की दुनिया को जाना चाहते हो जहां दुख नहीं हे मृत्यु की भय नेहिं हे। वो सूअर थोड़ी देर सोचा और बोला मे एक बार मेरे बीबी से सलाह ले लेता हूँ फिर आपको बताऊँगा। जैसे वो अपने बीबी को वो सब बताया तो बीबी ने बोली की हम लोग तो कीचड़ के बिना रह नेहिं सकते हे तो ऊपर की दुनिया मे क्या कीचड़ हे यदि हे तभी जाएंगे नहींतो हम यहीं पे खुश हें । कुछ देर बाद वो सूअर आके श्री कृष्णको पूछा की क्या ऊपर कीचड़ हे और श्री कृष्ण ने मना कर दिया तो सूअर ने बोला तब उपरकी दुनिया मे हम नहीं जाएंगे। हम लोग स्थूल दुनियाँ मे इतना लिप्त हें की हम होश मे नहीं हें और हमे कीचड़ पसंद आचूका हे अब हमे और कोई अछे चीज पसंद नेहिं आएगा।
जनसंख्या में वृद्धि की उच्च दर, जैसा कि पहले बताया गया है कि मानव जाति को जीवित रहने के लिए प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हुई है, इसलिए परमात्मा चेतना की बजाय शारीरीक चेतना की और अधिक बृद्धि हुई है। इसलिए द्वापर युग के बाद पृथ्वी के ऊपर शांति स्थापना के लिए बहुत सारे धर्म गुरु या धरम पिता धरती पर आए जैसे की भगवान येसु (jesus) , पैगंबर मोहम्मद, भगवान बुद्ध , लेकिन परिस्थिति और बिगड़ती गयी। पृथ्वी के ऊपर भार बढ़ रहा है जैसे की जन संख्या बृद्धि, पर्यावरण(पाँच तत्त्व) दूषितकरण, समाज मे चरित्र का पतन ? कई बुद्धिजीवियों, राजनीतिक नेता , वैज्ञानिकों कोशिश कर लिए लिकिन वो भी समय के साथ लुप्त हो गए। यहां तक ​​कि वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, अंतरिक्ष वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष ज्ञान द्वारा अंतरिक्ष मे खोज कर रहें है लेकिन आजतक ऐसे कोई सफलता नहीं मिली हे। इस मामले मे NASA, अमरीका के एक अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र हे जो समय समय पर अपनी खोज की घोषणा करता रहता है। ये बिज्ञान भी स्थूल चेतना की ऊपर आधारित हे इसलिए वो भी कोई समाधान खोज करने मे असफल हे।
तो हमे ये सृष्टि को बचाने के लिए ये हद की ज्ञान कोई लाभ मे नहीं आयेगा इसलिए हमें बेहद की ज्ञान की और जाना पड़ेगा। ये बेहद की ज्ञान किसके पास हे? जिसके पास हे सिर्फ वही दे सकता हे। बेहद की ज्ञान सिर्फ बेहद की रचइता ही दे सकता हे क्यूँ की जो रचना क्या हे वही सिर्फ उसिका नियम जानता होगा। ये बेहद की रचइता मतलब बेहद की बाप। पहले बताया गेया हे ये समय बहुत महत्वपूर्ण हे तो हमे बेहद की बाप की खोज करना चाइए। जिस के पास आध्यात्मिक ज्ञान के साथ भौतिक ज्ञान की पूरा समझ होगा और इसके एलबा वो जो परमात्मा को सिर्फ खोज कर रहा होगा वही सिर्फ बेहद की ज्ञान को समझ पाएगा और बेहद की बाप को पहचान पाएगा। जो परमात्मा की खोज मे रहेगा उसका जीवन भी बहुत सरल और पबीत्र रहेगा।
जैसे की समय के साथ वो बेहद की बाप की काम करने की तरीका मे परिवर्तन आता हे ये पहले बताया गेया है तो अभी के समय के हिसाब से बेहद की बाप भी काम करेगा सृष्टि परिबर्तन के लिए। जैसे जो लोग त्रेता युग मे श्री राम को समझ गए थे और जो लोग द्वापर मे श्री कृष्ण को समझ गए थे और उनकी कृपा की पात्र बन गए थे वो लोगों को बहुत लाभ मिला था। ऐसे ही जो अभी बेहद की बाप को समझ जाएगा उसको भी बहुत लाभ मिलेगा। ये मंदिर, मस्जिद, या पबीत्र ग्रंथों से ज्ञानी आत्मा की परमात्मा की और खोज सुरू होती है लेकिन आजकी मानव समाज ये मंदिर, मस्जिद, या पबीत्र ग्रंथों मे अपनी खोज अंत कर रहें इसलिए आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो रहा है और बेहद की ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो रहा है।
अब ऊपर लिखी गयी बातों का सारांश ये है की ये स्थूल दुनिया की ज्ञान को बेहद की ज्ञान कहते है जो की सीमित हे और ये हमे और धरती के संरक्षण के लिए कोई मदद नहीं करेगा क्यूंकी ये मानव समाज को और नकारात्मक सोच के तरफ ले जा रहा है। आज के समय मे हम आपने आपको और ये धरती को बचाना चाहते हैं तो इसकी परिवर्तन करना जरूरी है जो की बेहद की ज्ञान से हो सकता हे। जो बेहद की ज्ञान को धारण करेगा वो सिर्फ आपने लिए नहीं सारे सृष्टि के लिए काम करेगा और ये स्थूल सृष्टि को एक नयी और आध्यात्मिक सृष्टि मे परिबर्तन करने मे सहायता करेगा। इसलिए गीता मे ये भी लिखा है जो आपने लिए जीता है वो पशु हे ओर जो सारे सृष्टि के लिए जीता है वो फरिस्ता हे। आज के समय मे सूचना प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्र इतना बिकास हुआ है की इसके द्वारा ज्ञान youtube द्वारा आसानी से कोई भी ले सकता हे। ये बेहद की ज्ञान को बिना मूल्य इंटरनेट के माध्यम से पा सकता हे।
सृजन परिवर्तन का विज्ञान क्या है?
हालांकि यह विषय बहुत विशाल और गहरा है, जो समझने के लिए बहुत समय और स्थान की आवश्यकता है, लेकिन यहां इसे बहुत ही कम और संक्षिप्त ढंग से व्यक्त किया गया है। जीवन का निर्माण कंपन का एक रूप है इस रचना में सब कुछ विशेष आवृत्तियों( फ्रिक्वेन्सी) मे कंपन हो रहा है। आज की बिज्ञान इस अनंत सृष्टि का कुछ रहस्य खुलासा किया हे जैसे की हमारे आकाश्गंगा (galaxy) मे अनंतकोटी सौर मण्डल (solar system) घूम रहें हें , ऐसे ही असंख्य आकाशगंगा एक ब्रह्मांड(universe) के अंदर घूम रहें हैं, अंतरीक्ष मे असंख्य ब्रह्मांड हे जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकते हैं। जैसे हमारे भौतिक दुनिया मे एक छोटी शक्ति एक बड़ी शक्ति के चारों ओर घूमता रेहता है ऐसे ही सौर मण्डल आकाशगंगा मे और आकाशगंगा ब्रह्मांड मे घूमता रेहता है। सूर्य , ग्रह, आकाश्गंगा , ब्रह्मांड सारे चीज घूम रहें हें लेकिन एक बिशेष आवृत्तियों( फ्रिक्वेन्सी) मे। कोई चीज इस अंतरीक्ष मे स्थिर नहीं हे लेकिन हम इस धरती मे बसना चाहते हैं। हमारा हालत समझने के लिए एक उदाहरण दिया जाता हे। जैसे की एक चींटी एक पत्ता के ऊपर बैठा हे ओर वो पत्ता एक कोटोरी मे हे ओर ये कोटोरी एक टोकरी मे बंद है ओर ये टोकरी एक जहाज के अंदर हे ओर ये जहाज एक असीमित समंदर मे जा रहा हे। ये समंदर अंतरीक्ष हे और ये धरती एक पत्ता जैसा हे ओर हमारा हालत एक चींटी जैसा हे। समंदर की एक छोटासा लहर सबकुछ एक क्षण मे अंत कर सकता हे लेकिन हम लोग इस पृथ्वी के ऊपर सबसे बड़ा बनने के लिए लड़ रहे हैं। इससे हमारा हालत क्या है सब समझ सकते है। बेहद की ज्ञान की मतलब हे की आपको पूरी जानकारी होनी चाइए के आप कहाँ हे और किस समय मे है कौनसा दिशा मे जा रहें हैं। आपको पूरा ज्ञान होना चाइए की कैसे एक ही शक्ति पूरी सृष्टि को संचालन कर रहा हे। अभीतक की सभी रहस्य जो की सभी पबीत्र ग्रंथों (श्रीमद भगवत गीता, बाइबल , कोरान, हिन्दू मे 18 पुराण इत्यादि) मे लिखा गया हे उसकी पूरी तरह समझभी होना चाइए। आपको जब ज्ञान के द्वारा पता लग जाएगा एक ही असीमित शक्ति सारे सृष्टि रचा हे ओर वही शक्ति उसिका पालन पोषण कर रहा हे तो आपके अंदर सभी संदेह दूर हो जाएगा और आपको किसी मंदिर या धर्म ग्रंथ या किशि गुरु या किशि शारीरिक ब्यायाम की जरूरत नहीं शांति पाने के लिए। आपको जब ज्ञान आयेगा तभी आपको पता चलेगा की ये हद की सृष्टि, जहां हम रहने के लिए इतना मेहेनत कर रहें हैं वो नष्ट होने बाला है। ये भी पता लगेगा की आप क्यूँ ओर कैसे ये हद की सृष्टि मे आयें हे। जब ये सारे प्रश्नों की उत्तर ज्ञान के द्वारा मिल जाएगा आप अपनी जन्म का लक्ष्य पता चल जाएगा ओर आपकी मूल काम क्या है वो पता चलेगा और आपके अंदर परिवर्तन आयेगा। जैसे आपके अंदर परिवर्तन आयेगा आपको देख कर आपके आस पास लोग भी अपने आप को परिवर्तन करेंगे। ये बहुत गहरी ज्ञान है ये आपको कोई किताब या धर्म ग्रंथ या गुरु या मंदिर मे नहीं मिल सकता इसके लिए आपको बेहद की बाप के जानना पड़ेगा और योग लगाना पड़ेगा।
जैसे ऊपर लिखा गया है सभी स्थूल चीज चाहे वो ब्रह्मांड हो या एक अणु (एटम) कोई स्थिर नहीं हे ; सारे बस्तुएँ इस हद और बेहद की सृष्टि मे कंपायमान स्थिति मे है। उनकी कंपन की एक बिशेष आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी है। ये आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी कौन निर्धारित कर रहा हे? क्यूँ की ये सारे जो बस्तुएँ हिल रहा हे या घूम रहा हे ये सब जड़ हे उनमे कोई शक्ति नहीं हे। यहाँ एक छोटा सा उदाहरण देते हैं जैसे एक ब्यक्ति जो की कुछ देर पहले खुस है वही अब दुखी है। हम सिर्फ उसकी बाहर की ब्याबहर को देख रहें है बाकी उसके मन के अंदर क्या चल रहा हे ये हम नहीं जानते। एक शक्ति उसके अंदर काम कर रहा हे और ये मन को बिचलित करता हे और इसके शरीर उसिके हिसाब से कंपायमान होता हे जो हमे दिखता हे वो खुस हे या दुखी हे। इसिकों उस ब्यक्ति की आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी कहा जाता हे जो की मन की सोच से उत्पन्न होता हे। इसलिए सभी धर्म ग्रन्थों मे मन को आयत्त करने के लिए कहा गया हे। ऐसे ही सभी जीबीत या जड़ मे भी ये कंपन चल रहा हे कुछ हम देख सकते हें कुछ हम नेहिं देख सकते हें। जब एक स्थान की सभी जीबीत या जड़ की कंपन एकत्रित या सम्मिलित रूप मे काम करता हे ये उस स्थान के कंपन को निर्धारित करता हे। जैसे कंपन होता हे तो बिज्ञान के हिसाब से उस स्थान की एक आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी होता है। ऐसे ही हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े बस्तु की एक फ्रिक्वेन्सी रहता है और ये सारे बयुमंडल को पहेले सूक्ष्म (अणु , परमाणु जो की ये सुखमा आँखों को दिखता नहीं) स्तर पर प्रभाबित करता हे और बाद मे ये स्थूल मे दिखाई देता हे। ये एक बिज्ञान हे जिसके लिए आपको वो ज्ञान की गहराई मे जाके उसको अभ्यास करना पड़ेगा तब आप अपने आप को और ये पूरी सृष्टि को परवर्तन कर सकते है। लेकिन अभी समय कम हे शीघ्र ये ज्ञान प्राप्ति करें और परिबर्तन मे सामील हो जाएँ।
पूरा जानकारी के लिए आप youtube site, www.youtube.com/anant98251 और इंटरनेट साइट www.bapujidashrathbhaipatel.org मे ये बेहद की ज्ञान को बिना मूल्य इंटरनेट के माध्यम से प्राप्ति करें।
यहां यह भी उल्लेख किया गया है कि भौतिक संसार में भी जब एक न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त किया जाता है, तो सेवानिवृत्त न्यायाधीश के किसी भी फैसले का कोई भी नतीजा नहीं है क्योंकि वह निर्णय का उच्चारण करने के लिए अपनी सारी शक्ति खो देता है। जब न्यायाधीश सत्ता में है, तो उसके निर्णय का अर्थ और देश पर बाध्यकारी है। तो समय को पहचान करें और सृष्टि के परिवर्तन के प्रति वर्तमान समय का कर्तव्य समझें। यदि कोई भूतकाल ( जो इस धरती से चले गये हें जैसे की वो कोई भी अवतार या धर्म गुरु हो) में या भविष्य ( जैसे कोई आनेबला है जैसे की कल्कि अवतार) में रहता है तो वह वर्तमान मे पावर मे जो न्यायाधीश हे उसको पहचान नहीं पाएगा और उससे जो फायदा मिल शकता वो भी नहीं मिलेगा। क्यूंकी बेहद की बाप देना चाहता हे तो ले लो नहीं तो ऊपर बर्णित सूअर की कहानी जैसे इस स्थूल दुनियाँ मे कीचड़ मे रह जाओगे। इस महा कार्य मे सबको भागीदार बनना चाइए और ये सब की कल्याण के लिए। अच्छेदिन वही लाएगा जिसके पास असीमित सामर्थ्य हे कोई राजनैतिक नेता या कोई बैज्ञानिक या कोई धर्म गुरु के बस की बात नहीं क्यूँ खुद वो स्थूल दुनिया मे स्थूल छीजो एकट्ठे करनेमे और मान शान मे पड़े हैं। आईए इस महान बदलाव और उसके असीम लाभ में भाग लेने का अवसर मत खोये।
सृष्टि एक रहस्य है और इस रहस्य को समझने के लिए कई गुरु, ऋषि, संत, फकीर, अवतार (हिंदू परंपरा में) समय-समय पर पृथ्वी पर आए थे। ऋषियों, मुनियों, संतों, अवतारों आदि द्वारा प्रसारित ज्ञान से मानव समाज बहुत ही उजागर हुआ है और समाज की संस्कृति तदनुसार परिवर्तन होता गेया। रहस्य अंधेरे के समान हे, लेकिन अंधेरे जब प्रकाश के माध्यम से सुलझाया जाता है तो इसे ज्ञान कहा जाता है। इसलिए रहस्य के विभिन्न स्तर और ज्ञान के विभिन्न स्तर हैं। तो रहस्य का अंत कहाँ है? और ज्ञान का अंत कहाँ है? इस स्थूल संसार मे मृत्यु अनीबार्य हे ये सभी जानते हुए अंजान बने हुएँ है ओर मृत्यु के इंतेजार मे बैठे हुए हैं।
सभी धर्मों ने एक बात पर महत्त्व दिया हे और वह हे आत्मा। सभी अवतार (हिंदू परंपरा में) और सभी गुरुओं / संन्यासी / फकीर / ऋषि आदि जो धरती पर आए, वे भी आत्मज्ञान पर जोर दिया? तो सभी जीवित प्राणी
के दो भाग हे उस में से एक दिखता है, अर्थात् शरीर और अन्य अदृश्य है वो हे आत्मा। आत्मा शरीर का संचालन कर रही है लेकिन जैसा कि सभी जीवित प्राणी अपनी आत्मा से अवगत नहीं हैं, लेकिन उनके शरीर के बारे में पूरी तरह से अवगत हैं। तो शरीर के बारे में जागरूकता को शरीर चेतना या स्थूल चेतना कहा जाता है और आत्मा की जागरूकता को आत्म चेतना कहा जाता है। उपरोक्त पहलू को श्रीमद भागवत गीता, बाइबल, कुरान, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जैसे सभी पवित्र आध्यात्मिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित किया गया है और विभिन्न युगों (चार युग) में विभिन्न घटनाओं के रूप में पुराणों (हिंदू अवधारणाओं में आध्यात्मिक ग्रंथों) में भी समझाया गया है। मानव भी पृथ्वी की अन्य जीबीत प्राणी की तरह है, जब तक कि वह उसकी आत्मा से अवगत नहीं हुआ हैं। येहुदी, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम (मुस्लिम) जैसे धर्मों पिछले 3000 से 4000 वर्षों मे अस्तित्व में आया हे, लेकिन उस अवधि से पहले धरती पर विभिन्न धार्मिक समूहों या विभाजनों की कोई ऐसी अवधारणा नहीं थी। लगभग 5000 साल पहले मानव जाति पर्यावरण के साथ संतुलन में रह रहा था और वह उनका धर्म था, जो स्पष्ट रूप से हमारे हिंदू पवित्र ग्रंथों(वेद, उपनिषद, पुराणों) में दर्शाया गया है। हिन्दू परंपरा में वेद, उपनिषद, पुराणों उस समय ऋषियों / मुनियों द्वारा कल्पना की गई थी जो उस समय के आध्यात्मिक वैज्ञानिक थे। तब ऋषियों और मुनियों के पास प्रचण्ड आत्मशक्ति थी जिसके द्वारा वे अपनी चेतन शक्ति को बहुत उच्च स्तर तक ले जा सकते थे जो कि इस सौर मंडल या आकाशगंगा से भी परे जा सकते थे और वहाँ की सृष्टि को देख सकते थे। इस वजह से वे हिंदू ग्रंथों (वेद, उपनिषद, पुराणों) में सौर मंडल और आकाशगंगा के सृजन की इतिहास और भूगोल के विवरण समझाया गया हे बिभिन्न कहानी के माध्यम से। परंतु बर्तमान समय मे मानब आत्मा मे इतना शक्ति नहीं है की वो उपरक्त ग्रंथों की मूल अर्थ को समझ पाए। आधुनिक मनुष्य समाज उन ग्रंथोंको (वेद, उपनिषद, पुराणों) पौराणिक कथा कहते हें और उसीमे लिखी गेई आध्यात्मिक बिज्ञान को समझ नहीं पा रहें हे।जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया , समय समय पर शक्तिशाली व्यक्तित्व जो की दिव्य शक्तियों के साथ संपन्न थे, धरती पर आने लगे और कई धर्मो और कई आध्यात्मिक संस्था इस धरती के ऊपर स्थापन किए। उन शक्तिशाली व्यक्तित्व को इस मानव समाज मे धर्म पिता या परमेश्वर के दूत या पैगामबर कहा गेया। मानव समाज में आध्यात्मिक ज्ञान, शांति, सद्भाव स्थापित करना सभी धर्मों के आधारभूत सिद्धांत है।
लेकिन आज अधिकतम संघर्ष केवल धर्म की वजह से है और अभी तक धार्मिक विवाद के कारण अधिकतम युद्ध हुए हैं और अधिकतम संख्या में केवल धार्मिक मतभेदों के आधार पर ही मृत्यु हो चुकी है और हो रही है। आजकल लोगों के एक विशेष समूह , जो धर्म के अंतर में या विचारों में अंतर के नाम पर क्रूरता से दूसरे समूह लोगों को मारने के लिए झिझक नहीं रहे हैं, उन्हें आतंकवादी कहा जाता है और यह दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। कई धर्मों के अलावा, वर्तमान में भारत में कई गुरु या आध्यात्मिक स्वामी हैं और साथ ही अन्य देशों में भी आध्यात्मिक विज्ञान की शिक्षाओं के अपने संस्करण फैले हुए हैं, जो लाखों लोगों द्वारा उनकी पसंद और समझ के अनुसार अनुकरण कर रहें हैं। आजकाल अपने भगवान या गुरु को निष्ठा का सबूत दिखाने के लिए अधिकतर राशि भगवान के नाम पर मंदिरों में और आध्यात्मिक संस्था (आश्रम कहा जाता है) मे दान के रूप में दिया जाता है। यदि यह सभी दान में एकत्र हुए सभी निधियों को जोड़ा जाए तो भारत को गरीबों के विकास के लिए कोई आर्थिक सुधार की आवश्यकता नहीं होती है। बहुत सारे धर्मों, गुरुओं, मंदिरों के बावजूद अपराध में वृद्धि हो रही है, असहिष्णुता बढ़ रही है, और भौतिकवादी जीवन बढ़ रहा है। कोई भी शांति में नहीं है, लेकिन हर बौद्धिक(intellect) शांति की बात कर रहा है और शांति स्थापित करने के लिए अलग अलग सिद्धांत प्रदान कर रहा है। कुछ महिलाएं सशक्तिकरण के लिए काम कर रही हैं, कुछ समूह किसानों के लिए काम कर रहा है, कुछ बच्चों के लिए कर रहें है, कुछ पर्यावरण के संरक्षण के लिए कर रहें हैं, लेकिन अगर कोई दैनिक समाचार पत्र या समाचार चैनल को देखता है तो अपराध का प्रकार इतनी क्रूर और क्रूरतापूर्ण है कि एक शांतिप्रिय मानव के दिल मे डर, अनिश्चितता भर देता है। आजकल मानव सेवा के नाम पर बहुत सारे अस्पतालों निर्माण किया जा रहा है, लेकिन मौत के भय को उत्प्रेरित करके मानव के मनोविज्ञान से छेड़छाड़ करके कारोबार करने का एक साजिश है। आज के समय मे सभी सफल व्यवसाय आधारभूत दो चीज़ें पर निर्भर हे पप्रथम शान तथा आरामदायक जीवन की प्रोलोभन द्वितीय मृत्यु के डर। आज के शिक्षा प्रणाली ( मेडिकल,इंजीन्यरिंग,मैनेजमेंट) उपरक्त चिंता धाराओं को बढ़ावा देता है जो इस उपोरक्त कार्य मे माहीर होगा उसिकों होशियार माना जाएगा। इसलिए आज के समयमे इस धरा के ऊपर किसिकों भी सफल ब्यबसायिक बनने के लिए दो चीजों मे सक्षम होना चाइए प्रथम लोगों को मृत्यु के दर दिखाना द्वितीय लोगों को शान तथा आरामदायक जीवन की प्रोलोभन दिखाना। आज के मानव समाज स्थूल दुनिया मे इतना डूबा हुआ है की उसको आत्मा की अस्तित्व एबम उसकी दिव्यता के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकता हे। स्थूल चेतना या बुद्धि का मतलब हे की वो मनुष्य सिर्फ जो इस चर्म चखयु मे दिखता हे उसिके ऊपर बिस्वास करता हे। ये स्थूल दुनिया सीमित हे। जिसकी एक सीमा हे वो असीमित नहीं हें उसिकों हम हद कहतें हैं। जो असीमित हे और ये स्थूल दुनिया के दाएरे से बाहर हे वो बेहद हे। बेहद को हद की बिपरित समझ सकते हे जो अनंत हे। इसलिए स्थूल चेतना या बुद्धि बाला मनुष्य के बिचार या सोच सीमित होता हे। आज के समय मे इतना ज्यादा जन्स्नख्या मे बृद्धि हो गयी हे की ये स्थूल दुनिया मे एक छोटी सी चीज पाने के लिए इतना प्रतिस्पर्धा हे की हर मनुष्य अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा हे।ये स्थूल दुनिया सीमित हे और हर बस्तु मे अभाब हे और ये असुरक्षा का जन्मदाता हे। अपना अस्तित्व खो देना का डर,असुरक्षा महसूस करना,स्थूल भोग करने का लालसा सभी प्रकार की अपराध या क्रूरता का मूल कारण हे। उपरक्त सभी कारकों का जन्मदाता स्थूल दुनिया ही है। इसिकों हद की दुनिया कहा जाता हे जहां हम रहने के लिए इतना संघर्ष कर रहें हे। हम सभी सुखों की खोज इसी दुनिया मे कर रहें हैं। हम जब स्थूल दुनिया के सीमा को पार करेंगे तो असीमित दुनिया मे कदम रखेंगे उसको बेहद की दुनिया कहेंगे। उसके लिए बेहद की ज्ञान चाइए जैसे हम स्थूल दुनिया मे मेडिकल या इंजीन्यरिंग का पढ़ाई करते हैं।
सभी आध्यात्मिक ग्रंथ, धार्मिक पिता, संत, फकीर ने पृथ्वी पर शांति , प्रेम स्थापन करने की कोशिश की, लेकिन मानव प्रजातियों की सीमित( हद की) समझ के आधार पर धरती पर विभाजन होते गेया और अभी भी जारी हे। अंत में अब इस धरती में कई सीमाएं हैं वो धर्म, जाति, भाषा, आदि चीजों पे आधारित हे। विश्व की आबादी एक खतरनाक दर से बढ़ रही है जो वर्ष 1817 में लगभग 9 8 करोड़ थी, वर्ष 1917 में 1 9 0 करोड़ पहुंची , वर्ष 2017 में 750 करोड़ हो गेई और भारत की आबादी भी उसी हिसाब से बढ़ति रही और आज भारत पृथ्वी मे द्वितीय स्थान मे हे। जनसंख्या में वृद्धि और प्रकृति द्वारा प्रदत्त सीमित भौतिक संसाधनों के साथ पृथ्वी पर मानव अस्तित्व का बना रहना चिंता की बिषय हे जो की सभी स्तर की बौद्धिक समझ रहें है लेकिन कुछ कर नहीं पा रहें हैं।जिस तरह हम आजकी जीबन ब्यातित कर रहें हैं उस हिसाब से ये धरती 100 साल से ज्यादा कायम नहीं रह सकता हे, हाल ही में एक प्रसिद्ध बैज्ञानिक जिनका नाम Stephen Hawking ये शब्द बोले थे। तब हम कहाँ जाएंगे? आउर ये लड़ाई किसकेलिए ?
कोई भी मंदिर, चर्च, या मस्जिद या कोई आध्यात्मिक प्रतिष्ठान या कोई गुरु या वैज्ञानिक पृथ्वी पर इस मानव जाति को विलुप्त होने से बचाने में असक्षम होगा यदि हम इस तरह से जीवन जीबन ब्यातित करेंगे। हिंदू पुराणों में यह कहा जाता है कि वर्तमान समय को कलियुग कहा जाता है और इसकी अवधि लगभग 4,32,000 साल है, इसके केवल 5000 साल बीत चुके हैं, इसलिए कलियुग में और 4,27,000 साल बचे हैं। यह भी कहा जाता है कि कलियुग के अंत में कल्कि अवतार (हिंदू भगवान में विष्णु का अवतार) पृथ्वी पर प्रकट होते है और सभी असुरों या राक्षसों या नकारात्मक लोगों को दमन करते है और केवल संत या सकारात्मक लोग पृथ्वी पर सत्य युग स्थापित करने के लिए बने रहेते हे। अगर वर्तमान परीस्थिति कायम रहेता हे फिर 4,27,000 साल बाद कल्कि अवतार पृथ्वी पर आएंगे तो पृथ्वी अस्तित्व में नहीं होगी इसलिए कल्कि अवतार को अपने मिशन को पूरा करने का कोई मौका नहीं मिलेगा। इसलिए यह पृथ्वीपर एक महत्वपूर्ण समय चल रहा है जब परिवर्तन होना जरूरी हे, पृथ्वीके अस्तित्व के लिए। जब भी परिवर्तन होता है, परिवर्तन की सुविधा के लिए कुछ नया विचार के साथ नया व्यक्तित्व पृथ्वी पर अस्तित्व में आते है। यह सृष्टि का नियम है जो समय और स्थान के साथ बदलता है।
हिंदू अवधारणा में समय चक्र को चार युग मे बीभक्त किया गेया हे जैसे कि सत्य युग (स्वर्ण युग), त्रेता युग (सिल्वर एज), द्वापर युग (कॉपर एज) और कली युग (आयरन आयु), ये समय चक्र स्वयं को दोहोरता रहता हे जबतक एक ब्रह्मा के समय काल का अंत न हो जाए। पृथ्वी के ऊपर युगों का परिवर्तन पर्यावरण की स्थिति (धरती, वायु, जल, अग्नि और आकाश जैसे 5 तत्व की शुद्धता) और धरती पर मानव आत्मा की मनोवैज्ञानिक / मानसिक स्थिति के आधार पर होता है। प्रत्येक युग के अंत के साथ पृथ्वी की स्थिति खराब हो जाती है और खराबी का शिखर काली युग में पहुंच जाता है। समय के साथ, सौर मंडल, आकाशगंगा, ब्रह्मांड, जैसे अंतरिक्ष में विभिन्न स्तरों में सृजन और विघटन का कानून बदलता रहता हे। एक विशेष समय और स्थान पर निर्माण / विघटन के कानून को समझने के लिए आत्मा में गहरा अंतर्दृष्टि और जबरदस्त शक्ति होनी चाहिए। धरती पर यदि कोई मृत व्यक्ति अब जीवन में वापस लाया जाए जो इस धरती पर 100 वर्ष पूर्व था , तो आज की सामाजिक संरचना और प्रौद्योगिकी के विकास, पर्यावरण में शुद्धता की गिरावट आदि के कारण मानव जाति के जीवन के तरीके को समझ नहीं पाएगा । परिवर्तन इस धरती के जीवन का एक अपरिबर्तनीय नियम हे। यहां उल्लेख करने योग्यो है कि अवतार भगवान राम पृथ्वी पर त्रेता युग के अंत में आए थे, जब त्रेतायुग द्वापर युग में परिबर्तन हो रहा था। त्रेता युग मे पृथ्वी के ऊपर जीबन शैली तथा निर्माण / विघटन के कानून,द्वापर युग से पूरी तरह अलग था। त्रेता युग मे लोग शांति प्रिय थे जैसे की उस समय धन, संपती, जमीन के लिया कोई लड़ाई होते हुए नहीं देखा गया। रामायण मे जब श्री राम बनबास गए तो उनके पीछे भरत भी बन मे गए और श्री राम को लौट आने के लिए निवेदन किए थे जबकि द्वापर युग में एक छोटीसी जमीन के टूकडे के लिए महाभारत युद्ध हुआ था। इसे पता चलता है समय के साथ कितना बदलाओ आता हे।जब त्रेता में एक भाई दूसरे भाई के लिए सब कुछ छोडने को तयार था द्वापर मे एक जमीन के लिए एक भाई दूसरे भाई को मारने के लिए तत्पर था। ऐसा क्या हुआ धरती के ऊपर जो की एक भाई दूसरे का दुश्मन बन गया। आज के समय मे कोई किसिका भाई ही नहीं रहा। जब आप समझ जायेंगे की ये परिबर्तन क्यूँ हो रहा है तो आप ये समझ जाएंगे की अवतार धरती पर क्यूँ और कब आते है। त्रेता युग मे श्री राम के द्वारा कौन काम करबा रहा था।लोग शरीर को भगबान मान लेते हे जो की नश्वर हे। जैसे त्रेता युग का अन्त हुआ द्वापर युग का आगमन हुआ और श्री राम नहीं रहें। द्वापर युग के अन्त मे श्री कृष्ण का आगमन हुआ तब इस धरती मे मानव समाज की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी ये सब महाभारत मे पढ़ा जा सकता हैं। श्री कृष्ण ने द्वापर युग मे बहुत सारे चमत्कार किए थे तथा धर्म की स्थापना के लिए उन्होने अपनी पूरी शक्ति लगाई थी। द्वापर युग मे श्री कृष्ण के द्वारा कौनसी शक्ति इतना चमत्कार कर रहा था। श्री राम को मर्यादा पुररूषोत्तम कहा जाता है जबकि श्री कृष्ण को छलिया कहा जाता है।ये दोनों अवतारों के अंदर एक ही शक्ति काम कर रहा था। लेकिन एक को हम मर्यादा पुरुषोत्तम कह रहें हैं ओर एक को छलिया कह रहें हैं। इसीसे पता चलता है समय के साथ अवतार बदल जाते हैं और उनका काम करनेका तरीका भी बदल जाता है क्यूँ की पृथ्वी के ऊपर बयुमंडल बदल जाता है जो की पाँच तत्त्व के (पृथ्वी, जल, बयु, अग्नि, आकाश) होते हैं। ये बयुमंडल के शुद्धता किसके ऊपर निर्भर हे? क्या ये बयुमंडल आपने आप बदल जाता हे? ये जो शक्ति समय समय पर धरती के ऊपर किसी मनुष्य के शरीर मे प्रकट होता हे वो आज कहाँ हे। क्या आज के समय इतना अच्छा हे की कोई परिवर्तन के जरूरत नहींन है? आज जो सब घाटनायें पृथवी के ऊपर घट रहा हे वो सब क्या मानव समाज के लिए अच्छा हे। यहाँ ये सब बोलने की जरूरत नहीं हैं, आप न्यूज़ पेपर या न्यूज चैनेल मे कैसे कैसे न्यूज़ देख रहें हैं उसीसे आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं। आज हर आदमी दौड़ मे लगा है बुलंदी पे खड़े होना चाहता है , उसको सब पहचाने , उसके पास सबसे ज्यादा पैसा होना चाइए। ये सब हासिल करने के के लिए आजकी मानव कुछ भी कर सकता हे। हम इस सबसे ऐसे आदत हो गया है की सभी गलत चीज हमें आछा लाग्ने लगा है। जैसे की टेलीभिजन (TV) पे कितना भी खराब (अनैतिकता और ब्याभिचार से भरपूर) सेरीएल हो फिर भी हम आपने आप को देखनेसे रोक नहीं पाते हें ये जानते हुए भी की ये समाज को बिगाड़ रहा हे।और आज मीडिया मे वही सेरीएल या न्यूज़ चैनल का सबसे ज्यादा कमाई हे। कोई अच्छा चीज दिखाने या लीखने के लिए कोई तयार नहींन हे क्यूँ की वो बिकता नहीं ओर जो अछे चीज दिखाना या सम्झना चाहता हे उसके पास पैसे का ताकत नहीं। आज के समय मे इतने मंदिर बन चुके हैं ओर इतने धर्म गुरु आ चुके हैं, और ये सब अपनी अपनी संस्था चलाने मे और मेम्बर बढ़ाने मे इतने ब्यस्त हैं की वो भी एक प्रतिस्पर्धा मे बदल चुका है। जैसे की सबसे ज्यादा पैसा कमानेबाला धार्मिक या आध्यात्मिक संस्था कौन सा हे और कहाँ सबसे ज्यादा लोग जाते हैं, वो सबकी आधार पर उस गुरु या संस्था की मान्यता बढ़ जाता है। जैसे लग रहा हे की मानव समाज को देख कर भगवान भी रह नहीं पाए और वो सोचे की मे भी प्रतिस्पर्धा मे उतर जाता हूँ। इसे ये लगता हे जैसे मूल धर्म स्थापक या आध्यात्मिक गुरु को इस धरती से जाने के बाद उनको अनुसरण करने बाले इस हद की माया मे फस जाते हें और बेमतलब की कम मे ब्यास्त रहते हें। जबकि दुनिया दिन पर दिन पतन की और जा रहा हे।
जो एक ही शक्ति जिसको हम “सर्ब शक्तिमान” या “परम पिता” या “बेहद की बाप” कह शकते हैं और जो बार बार धरती मे समय समय पर धरती के ऊपर किसी ना किसी शरीर या अवतार के द्वारा काम कराता रहता है जैसे की त्रेता मे श्री राम के द्वारा और द्वापर मे श्री कृष्ण के द्वारा धरती मे सुधार करने की प्रयत्न किया। लेकिन फिर भी धरती की हालत खराब से खराब होते गेया जैसे की त्रेता मे जो स्थिति थी वो द्वापर मे और बिगड़ गया और कलियुग बहुत बिगड़ गया। हम मानब जाती के बुद्धि स्थूल दुनिया या हद मे रहता है इसलिए हम शरीर तथा इस दुनिया की मान शान को सब कुछ मानलेते है और हम सबको अपने नजर से देखते है और अपने जैसे मानते है। इसलिए श्री राम, श्री कृष्ण जब धरती पे आए तो, सिवाय कुछ गिने चुने अत्यधिक आध्यात्मिक रूप से विकसित ऋषि या मुनि को छोड़ के सभी लोग श्री राम, श्री कृष्ण के अवतार कार्य के बारे मे अबगत नहीं थे जिसके लिए इतने सारे लड़ाइयाँ हुई और हम सब कलियुग मे आ पहुंचे। इसीलिए ये बोला जाता हे आप नहीं चाहेंगे तो भगबान भी आपका मदद नहीं करसकता। इसकी जमीदार हमारी स्थूल (हद) सोच या स्थूल बुद्धि हे जो की बिज्ञान मे बहुत निचले स्तर की कंपन या vibration कहा जाता है। जबतक हमारा बुद्धि हद या स्थूल दुनिया मे फसा रहेगा तो हमे नीचे गिरने से कोई रोक नहीं शकता। इसलिए श्रीमद भगवत गीता के निनमालिखित सलोक सबकुछ समझता है।
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् ।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥ ९-११॥
जो लोग मूर्ख हैं वो लोग मेरा मनुष्य शरीर को देखकर मेरा अबज्ञा या उपहास करते है और वो लोग मेरा सर्ब शक्तिमान या मेरा दिव्य स्वरूप को सोच या समझ नहीं पाते जबकि मे सारे सृष्टि की संचालन करता हूँ।
उपरक्त श्लोक मे बहुत सीधा साधा शब्द मे बोला गेया हे जो लोगो की सोच हद( स्थूल दुनिया) मे पड़ा हुआ है वो कितना भी धनबान या समाज मे प्रतिष्ठित या शिक्षित ब्यक्तित्व हो , वो मूर्ख हे क्यूँ की वो परम पिता या सर्ब शक्तिमान के दिव्य स्वरूप तथा सृष्टि के संचालन करता स्वरूप को पहचान नहीं पा रहा हे। श्रीमद भगवत गीता मे ही इस सृष्टि के पतन के कारण भी बताया गेया है। जब त्रेता मे श्री राम थे तो उनको मानव समाज समझ नहीं पाया उसका नतीजा हे की द्वापर मे जाना पड़ा जब धरती के ऊपर स्थिति और खराब हुआ। श्री राम को यदि कोई द्वापर मे खोज करेगा तो क्या वो मिलेंगे? ऐसे ही यदि कोई श्री कृष्ण को कलीयुग मे खोज करेगा तो क्या वो मिलेंगे? जब जैसी परिस्थिति होती है परम पिता या बेहद की बाप अपनी अनंत शक्तियों से एक छोटा सा अंश द्वारा किसी भी आत्मा तथा शरीर के द्वारा अपना काम धरती के ऊपर करबा लेता है। जैसे ही श्री राम या श्री कृष्ण के अवतार कार्य का अंत हुआ तो उन्हे भी धरती से जाना पड़ा तो वो कैसे मिलेंगे। जब थे तो समझ नहीं पाये जब चले गए तो हम लोग उनकी मंदिर बनाकर उनको मंदिरो मे , रामायण , महाभारत जैसे ग्रन्थों मे खोज रहे है तो वो काहाँसे मिलेंगे।क्यूँ की हमारे बुद्धि स्थूल दुनियामे सीमित हे इसलिए जो चर्म चक्षयु मे दिखता हे उसिकों बिस्वास करते हे ओर उसिकों ही आज के समय मे बैज्ञानिक दृष्टिकोण बोलते हैं।
जैसे की ऊपर बताया गया की एक युग जब दूसरे युग मे परिवर्तन होता हे तो एक ऐसी ब्यक्तित्व धरती पर दिव्य शक्ति के साथ आता हे जो की पूरे सृष्टि को बदलने की ताकत रखता है। वो उस समय की परिस्थिति और वो दिव्य ब्यक्तित्व की ऊपर निर्भर करता हे वो कैसे परीवर्तन करेगा। अभी जो समय चल रहा है उसको पुरुषोत्तम संगम युग कहते हैं और अभी परम पिता या बेहद की बाप या सर्ब शक्तिमान की पूरी शक्ति धरती के ऊपर परिबर्तन की तयारी कर रही है। ये समय बहुत महत्वपूर्णा हे। जैसे की ब्रह्म कुमारी संस्था इस बात को पुष्टि कर रही हे। ये बेहद के बाप का क्या अर्थ हे? जब हम हद बोलते है तो एक सीमा को दर्शाता हे। स्थूल दुनिया के एक सीमा हे जैसे की इस दुनिया के सारे चीज एक न एक दिन खतम होने बाला हे चाहे वो अपना शरीर हो या प्रकृति का कोई भी अंश जैसे खणीज सम्पदा हो।एक निर्धारित समय के अंदर ये सारे स्थूल दुनिया की अंत हो जाता हे। हद के बिपरित बेहद हे जो की कभी खतम नहीं होने बाला हे जिसकी कोई सीमा नहीं हैं। जैसे किसी के भी जन्म दाता को उसकी बाप बोला जाता है ऐसे ही इस बेहद की रचयिता को उसकी बाप बोला जाता हे। हमे जो सृष्टि अपनी इस स्थूल चक्षयु मे देख रहें हे उसके परे की जो सृष्टि हे वो अनंत हे उसिकों बेहद की दुनिया बोला जाता हे। इसको समझने के लिए श्रीमद भगवत गीता के 11 वे अध्याय के 7 नंबर ,8 नंबर तथा 47 नंबर श्लोक की सहायत लेता हूँ। जिसमे श्री कृष्ण आपने विराट रूप को अर्जुन के सामने प्रकट किए हैं।
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि ॥ ११-७॥
​ न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् ॥ ११-८॥
हे निद्रा को जीतने बाले अर्जुन , मेरे इस शरीरके एक छोटेसे हिस्सा मे चराचरसहित सम्पूर्ण जगत को अभी देख ले। इसके सिबाय तू और जो कुछ भी देखना चाहता हे वो भी देख ले।
परंतु तू इस अपनी चर्म चक्षयु से मुझे देख हि नहीं सकता, इसलिए मे तुम्हें दिव्य चक्षयु देता हूँ , जिससे तू मेरी ईश्वरीय विराट या असीमित सामर्थ्य देख।
श्रीभगवानुवाच ।
मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं
रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् ।
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं
यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् ॥ ११-४७॥
​ श्री भगबान बोले हे अर्जुन मैंने प्रसन्न होकर अपनी सामर्थ्य से मेरा यह अत्यंत श्रेष्ठ , तेज स्वरूप , सबका आदि और अनंत बिश्वरूप तुझे दिखाया है , जिसको तुम्हारे सिबाय पहेले किसिने नहीं देखा हे।
​ ये उपरक्त श्लोक से ये पता चलता हे की ये सृष्टि बहुत बड़ी हे ये हमारे स्थूल या हद की सोच के बाहर हे। अब बिज्ञान इस बात की प्रमाण दे रही हे की हमारे जैसे अनंत सौर मण्डल हे वो सब सौर मण्डल हमारे आकाशगंगामे घूम रहें हे। ये भी हे की असंख्य आकाशगंगा ब्रम्हांडमे घूम रहें है। बिज्ञान ये भी आज प्रमाण दे रहा हे की अनंत कोटी ब्रम्हांड अंतरिक्ष मे घूम रहा है। ये तो सिर्फ आजतक की बैज्ञानीकों की अनुसनधान हे। ये अकल्पिनीय सृष्टि को बेहद की दुनिया कहा जाता है। हम जिस धरती पर खड़े हैं ये एक सुई की नोक बराबर हे। इसलिए श्री कृष्ण अर्जुन को ये कहा की मेरा एक छोटे से हिस्से से ये चराचरसहित सम्पूर्ण जगत ब्याप्त हे। ये भी कहा की ये तू चर्म चक्षयु मे नहीं देख सकता इसकेलिए दिव्य चक्षयु चाइए और दिव्य चक्षयु सिर्फ परम पिता या बेहद की बाप की कृपा से मिल सकता हे। वो भी तभी मिलेगा जब वो प्रसन्न होगा। इससे ये बात बहुत साफ होता है की ये बेहद की सृष्टि अनंत हे और हम उसके समीप कुछ भी नहीं हैं लेकिन हम लोग सबसे बड़ा बनने के लिए दिन रात लगे हुए हें ओर उसको हासिल करने के लिए किसिकों भी हम परिशान कर सकते हैं।
आज के समय मे हम भगबान को शास्त्रों मे, पवित्र ग्रंथ मे या मंदिरों मे या किसी दरगाह या समाधि मे खोज कर रहें है।जब हम निराश होते हैं तो कहते है कल्कि अवतार कली युग के अंत मे आयेगा और सभी दुष्ट प्रब्रुती के लोगो की संहार करेगा वो भी कब 4,27,000 साल के बाद। तो जो लोग भगबान को मानते हैं और मर्यादा मे रहते है और कोई ब्याभिचार या छल नहीं करते है तो उनको इस दुनिया के लोग मूर्ख कहते हैं क्यूँ की उन्हे पता है की भगबान आयेगा भी तो इतने साल के बाद का तबतक देखा जाएगा। कोई भी भगबान को या बेहद की बाप को बर्तमान मे खोज करने की कोशिश नहीं करता क्यूँ की किसिकों भगबान नहीं चाइए ये बात भी श्रीमद भगवत गीता मे बहुत स्पष्ट अध्याय 7 श्लोक 16, 17 मे कहा गया हे।
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ ७-१६॥
हे भरतबंशियों मे श्रेष्ठ अर्जुन पबीत्र कर्म करनेबाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी – ये चार प्रकार के मनुष्य मेरा भजन करते हैं अर्थात मेरे शरण मे आते हैं ।
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥ ७-१७॥
​उन चार प्रकार के भक्तोंमे मुझमे निरंतर लगा हुआ अनन्य भक्तिबाला ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ है क्यूंकी ज्ञानीको में अत्यंत प्रिय हूँ और वह मुझे अत्यंत प्रिय हे।
उपोरक्त श्लोक से ये बहत स्पष्ट हुआ की चार प्रकार की लोग भगबान की शरण मे आते हैं एक है अर्थार्थी उसको अर्थ चाहिए , दूसरा आर्त उसको परिशनी से मुक्ति चाइए , तीसरा जिज्ञासु अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता हे , चौथा ज्ञानी जो सिर्फ भगबानको ही खोज करता हे। इसलिए ये भी हे की भगबान किसिकों निराश नहीं करते लेकिन वो ज्ञानी को ही प्यार करते हैं क्यूंकी सिर्फ वो भगबान को पाना चाहता हे। जो सच्चा ज्ञानी होगा वो निरंतर परमात्मा का ही सिर्फ खोज करेगा क्यूंकी स्थूल चीज उसके लिए मूल्यहीन होगा इसलिए ज्ञानी भगबान को वर्तमान मे ही खोज करेगा और सिर्फ उसिकों भगबान वर्तमान मे ही मिलेंगे। बाकी तीन प्रकार के लोगोंकों भगबान से ज्यादा अपनी चिंता ज्यादा हे तो ये स्थूल दुनिया मे भगबान को खोज करेंगे जैसे की मंदिर मे या मस्जिद मे या दरगाह मे या समाधि मे या शास्त्रों मे, पवित्र ग्रंथ मे क्यूँकी पहले उसकी काम होनी चाइए उसको कोई जल्दी नहीं क्यूंकी भगबान आने के लिए 4,27,000 साल बाकी हे। ज्ञानी भक्त भगबान को वर्तमान मे खोज करेगा और वो सत्य की पीछे जाएगा ओर किसीभी स्थूल छीजो से आपने आप को दूर रखेगा और वो अदृश्य अनंत शक्ति जो की अनंत सृष्टि की संचालन कर रहा हे उसिके साथ आपने संबंध रखेगा। जो अज्ञानी हे उसको भगबान कभी नहीं चाइए वो तो एक पशु जैसा हे उसकी एक उदाहरण यहाँ दिया जा रहा है। एक बार द्वापर युग मे एक ज्ञानी भक्त श्री कृष्ण को पूछा की आप तो अनंत कोटी ब्रह्मांड की मालिक हो और ऊपर की दुनिया तो बहूत अच्छा हे जहां कोई दुख नहीं है ओर वहाँ ऐसी कोई जगह की कमी नहीं है फिर ये धरती पे ये सारी प्राणी को क्यूँ नहीं वहाँ ले जाते हो इस धरती मे इतना कष्ट हे और दिन ब दिन बढ़ रहा हे। श्री कृष्ण बोले कोई एक भी जाने के लिए तयार हो जाए तो मेरा काम धरती पे आसान हो जाएगा। तभी एक सूअर वहांसे जा रहा था और श्री कृष्ण वो सूअर को पुछे की क्या तुम ऊपर की दुनिया को जाना चाहते हो जहां दुख नहीं हे मृत्यु की भय नेहिं हे। वो सूअर थोड़ी देर सोचा और बोला मे एक बार मेरे बीबी से सलाह ले लेता हूँ फिर आपको बताऊँगा। जैसे वो अपने बीबी को वो सब बताया तो बीबी ने बोली की हम लोग तो कीचड़ के बिना रह नेहिं सकते हे तो ऊपर की दुनिया मे क्या कीचड़ हे यदि हे तभी जाएंगे नहींतो हम यहीं पे खुश हें । कुछ देर बाद वो सूअर आके श्री कृष्णको पूछा की क्या ऊपर कीचड़ हे और श्री कृष्ण ने मना कर दिया तो सूअर ने बोला तब उपरकी दुनिया मे हम नहीं जाएंगे। हम लोग स्थूल दुनियाँ मे इतना लिप्त हें की हम होश मे नहीं हें और हमे कीचड़ पसंद आचूका हे अब हमे और कोई अछे चीज पसंद नेहिं आएगा।
जनसंख्या में वृद्धि की उच्च दर, जैसा कि पहले बताया गया है कि मानव जाति को जीवित रहने के लिए प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हुई है, इसलिए परमात्मा चेतना की बजाय शारीरीक चेतना की और अधिक बृद्धि हुई है। इसलिए द्वापर युग के बाद पृथ्वी के ऊपर शांति स्थापना के लिए बहुत सारे धर्म गुरु या धरम पिता धरती पर आए जैसे की भगवान येसु (jesus) , पैगंबर मोहम्मद, भगवान बुद्ध , लेकिन परिस्थिति और बिगड़ती गयी। पृथ्वी के ऊपर भार बढ़ रहा है जैसे की जन संख्या बृद्धि, पर्यावरण(पाँच तत्त्व) दूषितकरण, समाज मे चरित्र का पतन ? कई बुद्धिजीवियों, राजनीतिक नेता , वैज्ञानिकों कोशिश कर लिए लिकिन वो भी समय के साथ लुप्त हो गए। यहां तक ​​कि वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, अंतरिक्ष वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष ज्ञान द्वारा अंतरिक्ष मे खोज कर रहें है लेकिन आजतक ऐसे कोई सफलता नहीं मिली हे। इस मामले मे NASA, अमरीका के एक अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र हे जो समय समय पर अपनी खोज की घोषणा करता रहता है। ये बिज्ञान भी स्थूल चेतना की ऊपर आधारित हे इसलिए वो भी कोई समाधान खोज करने मे असफल हे। तो हमे ये सृष्टि को बचाने के लिए ये हद की ज्ञान कोई लाभ मे नहीं आयेगा इसलिए हमें बेहद की ज्ञान की और जाना पड़ेगा। ये बेहद की ज्ञान किसके पास हे? जिसके पास हे सिर्फ वही दे सकता हे। बेहद की ज्ञान सिर्फ बेहद की रचइता ही दे सकता हे क्यूँ की जो रचना क्या हे वही सिर्फ उसिका नियम जानता होगा। ये बेहद की रचइता मतलब बेहद की बाप। पहले बताया गेया हे ये समय बहुत महत्वपूर्ण हे तो हमे बेहद की बाप की खोज करना चाइए। जिस के पास आध्यात्मिक ज्ञान के साथ भौतिक ज्ञान की पूरा समझ होगा और इसके एलबा वो जो परमात्मा को सिर्फ खोज कर रहा होगा वही सिर्फ बेहद की ज्ञान को समझ पाएगा और बेहद की बाप को पहचान पाएगा। जो परमात्मा की खोज मे रहेगा उसका जीवन भी बहुत सरल और पबीत्र रहेगा।
जैसे की समय के साथ वो बेहद की बाप की काम करने की तरीका मे परिवर्तन आता हे ये पहले बताया गेया है तो अभी के समय के हिसाब से बेहद की बाप भी काम करेगा सृष्टि परिबर्तन के लिए। जैसे जो लोग त्रेता युग मे श्री राम को समझ गए थे और जो लोग द्वापर मे श्री कृष्ण को समझ गए थे और उनकी कृपा की पात्र बन गए थे वो लोगों को बहुत लाभ मिला था। ऐसे ही जो अभी बेहद की बाप को समझ जाएगा उसको भी बहुत लाभ मिलेगा। ये मंदिर, मस्जिद, या पबीत्र ग्रंथों से ज्ञानी आत्मा की परमात्मा की और खोज सुरू होती है लेकिन आजकी मानव समाज ये मंदिर, मस्जिद, या पबीत्र ग्रंथों मे अपनी खोज अंत कर रहें इसलिए आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो रहा है और बेहद की ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो रहा है।
अब ऊपर लिखी गयी बातों का सारांश ये है की ये स्थूल दुनिया की ज्ञान को बेहद की ज्ञान कहते है जो की सीमित हे और ये हमे और धरती के संरक्षण के लिए कोई मदद नहीं करेगा क्यूंकी ये मानव समाज को और नकारात्मक सोच के तरफ ले जा रहा है। आज के समय मे हम आपने आपको और ये धरती को बचाना चाहते हैं तो इसकी परिवर्तन करना जरूरी है जो की बेहद की ज्ञान से हो सकता हे। जो बेहद की ज्ञान को धारण करेगा वो सिर्फ आपने लिए नहीं सारे सृष्टि के लिए काम करेगा और ये स्थूल सृष्टि को एक नयी और आध्यात्मिक सृष्टि मे परिबर्तन करने मे सहायता करेगा। इसलिए गीता मे ये भी लिखा है जो आपने लिए जीता है वो पशु हे ओर जो सारे सृष्टि के लिए जीता है वो फरिस्ता हे। आज के समय मे सूचना प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्र इतना बिकास हुआ है की इसके द्वारा ज्ञान youtube द्वारा आसानी से कोई भी ले सकता हे। ये बेहद की ज्ञान को बिना मूल्य इंटरनेट के माध्यम से पा सकता हे।
सृजन परिवर्तन का विज्ञान क्या है?
हालांकि यह विषय बहुत विशाल और गहरा है, जो समझने के लिए बहुत समय और स्थान की आवश्यकता है, लेकिन यहां इसे बहुत ही कम और संक्षिप्त ढंग से व्यक्त किया गया है। जीवन का निर्माण कंपन का एक रूप है इस रचना में सब कुछ विशेष आवृत्तियों( फ्रिक्वेन्सी) मे कंपन हो रहा है। आज की बिज्ञान इस अनंत सृष्टि का कुछ रहस्य खुलासा किया हे जैसे की हमारे आकाश्गंगा (galaxy) मे अनंतकोटी सौर मण्डल (solar system) घूम रहें हें , ऐसे ही असंख्य आकाशगंगा एक ब्रह्मांड(universe) के अंदर घूम रहें हैं, अंतरीक्ष मे असंख्य ब्रह्मांड हे जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकते हैं। जैसे हमारे भौतिक दुनिया मे एक छोटी शक्ति एक बड़ी शक्ति के चारों ओर घूमता रेहता है ऐसे ही सौर मण्डल आकाशगंगा मे और आकाशगंगा ब्रह्मांड मे घूमता रेहता है। सूर्य , ग्रह, आकाश्गंगा , ब्रह्मांड सारे चीज घूम रहें हें लेकिन एक बिशेष आवृत्तियों( फ्रिक्वेन्सी) मे। कोई चीज इस अंतरीक्ष मे स्थिर नहीं हे लेकिन हम इस धरती मे बसना चाहते हैं। हमारा हालत समझने के लिए एक उदाहरण दिया जाता हे। जैसे की एक चींटी एक पत्ता के ऊपर बैठा हे ओर वो पत्ता एक कोटोरी मे हे ओर ये कोटोरी एक टोकरी मे बंद है ओर ये टोकरी एक जहाज के अंदर हे ओर ये जहाज एक असीमित समंदर मे जा रहा हे। ये समंदर अंतरीक्ष हे और ये धरती एक पत्ता जैसा हे ओर हमारा हालत एक चींटी जैसा हे। समंदर की एक छोटासा लहर सबकुछ एक क्षण मे अंत कर सकता हे लेकिन हम लोग इस पृथ्वी के ऊपर सबसे बड़ा बनने के लिए लड़ रहे हैं। इससे हमारा हालत क्या है सब समझ सकते है। बेहद की ज्ञान की मतलब हे की आपको पूरी जानकारी होनी चाइए के आप कहाँ हे और किस समय मे है कौनसा दिशा मे जा रहें हैं। आपको पूरा ज्ञान होना चाइए की कैसे एक ही शक्ति पूरी सृष्टि को संचालन कर रहा हे। अभीतक की सभी रहस्य जो की सभी पबीत्र ग्रंथों (श्रीमद भगवत गीता, बाइबल , कोरान, हिन्दू मे 18 पुराण इत्यादि) मे लिखा गया हे उसकी पूरी तरह समझभी होना चाइए। आपको जब ज्ञान के द्वारा पता लग जाएगा एक ही असीमित शक्ति सारे सृष्टि रचा हे ओर वही शक्ति उसिका पालन पोषण कर रहा हे तो आपके अंदर सभी संदेह दूर हो जाएगा और आपको किसी मंदिर या धर्म ग्रंथ या किशि गुरु या किशि शारीरिक ब्यायाम की जरूरत नहीं शांति पाने के लिए। आपको जब ज्ञान आयेगा तभी आपको पता चलेगा की ये हद की सृष्टि ; जहां हम रहने के लिए इतना मेहेनत कर रहें हैं वो नष्ट होने बाला है। ये भी पता लगेगा की आप क्यूँ ओर कैसे ये हद की सृष्टि मे आयें हे। जब ये सारे प्रश्नों की उत्तर ज्ञान के द्वारा मिल जाएगा आप अपनी जन्म का लक्ष्य पता चल जाएगा ओर आपकी मूल काम क्या है वो पता चलेगा और आपके अंदर परिवर्तन आयेगा। जैसे आपके अंदर परिवर्तन आयेगा आपको देख कर आपके आस पास लोग भी अपने आप को परिवर्तन करेंगे। ये बहुत गहरी ज्ञान है ये आपको कोई किताब या धर्म ग्रंथ या गुरु या मंदिर मे नहीं मिल सकता इसके लिए आपको बेहद की बाप के जानना पड़ेगा और योग लगाना पड़ेगा।
जैसे ऊपर लिखा गया है सभी स्थूल चीज चाहे वो ब्रह्मांड हो या एक अणु (एटम) कोई स्थिर नहीं हे ; सारे बस्तुएँ इस हद और बेहद की सृष्टि मे कंपायमान स्थिति मे है। उनकी कंपन की एक बिशेष आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी है। ये आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी कौन निर्धारित कर रहा हे? क्यूँ की ये सारे जो बस्तुएँ हिल रहा हे या घूम रहा हे ये सब जड़ हे उनमे कोई शक्ति नहीं हे। यहाँ एक छोटा सा उदाहरण देते हैं जैसे एक ब्यक्ति जो की कुछ देर पहले खुस है वही अब दुखी है। हम सिर्फ उसकी बाहर की ब्याबहर को देख रहें है बाकी उसके मन के अंदर क्या चल रहा हे ये हम नहीं जानते। एक शक्ति उसके अंदर काम कर रहा हे और ये मन को बिचलित करता हे और इसके शरीर उसिके हिसाब से कंपायमान होता हे जो हमे दिखता हे वो खुस हे या दुखी हे। इसिकों उस ब्यक्ति की आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी कहा जाता हे जो की मन की सोच से उत्पन्न होता हे। इसलिए सभी धर्म ग्रन्थों मे मन को आयत्त करने के लिए कहा गया हे। ऐसे ही सभी जीबीत या जड़ मे भी ये कंपन चल रहा हे कुछ हम देख सकते हें कुछ हम नेहिं देख सकते हें। जब एक स्थान की सभी जीबीत या जड़ की कंपन एकत्रित या सम्मिलित रूप मे काम करता हे ये उस स्थान के कंपन को निर्धारित करता हे। जैसे कंपन होता हे तो बिज्ञान के हिसाब से उस स्थान की एक आब्रूति या फ्रिक्वेन्सी होता है। ऐसे ही हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े बस्तु की एक फ्रिक्वेन्सी रहता है और ये सारे बयुमंडल को पहेले सूक्ष्म (अणु , परमाणु जो की ये सुखमा आँखों को दिखता नहीं) स्तर पर प्रभाबित करता हे और बाद मे ये स्थूल मे दिखाई देता हे। ये एक बिज्ञान हे जिसके लिए आपको वो ज्ञान की गहराई मे जाके उसको अभ्यास करना पड़ेगा तब आप अपने आप को और ये पूरी सृष्टि को परवर्तन कर सकते है। लेकिन अभी समय कम हे शीघ्र ये ज्ञान प्राप्ति करें और परिबर्तन मे सामील हो जाएँ।
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यहां यह भी उल्लेख किया गया है कि भौतिक संसार में भी जब एक न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त किया जाता है, तो सेवानिवृत्त न्यायाधीश के किसी भी फैसले का कोई भी नतीजा नहीं है क्योंकि वह निर्णय का उच्चारण करने के लिए अपनी सारी शक्ति खो देता है। जब न्यायाधीश सत्ता में है, तो उसके निर्णय का अर्थ और देश पर बाध्यकारी है। तो समय को पहचान करें और सृष्टि के परिवर्तन के प्रति वर्तमान समय का कर्तव्य समझें। यदि कोई भूतकाल (जो इस धरती से चले गये हें जैसे की वो कोई भी अवतार या धर्म गुरु हो) में या भविष्य (जैसे कोई आनेबला है जैसे की कल्कि अवतार) में रहता है तो वह वर्तमान मे पावर मे जो न्यायाधीश हे उसको पहचान नहीं पाएगा और उससे जो फायदा मिल शकता वो भी नहीं मिलेगा। क्यूंकी बेहद की बाप देना चाहता हे तो ले लो नहीं तो ऊपर बर्णित सूअर की कहानी जैसे इस स्थूल दुनियाँ मे कीचड़ मे रह जाओगे। इस महा कार्य मे सबको भागीदार बनना चाइए और ये सब की कल्याण के लिए। अच्छेदिन वही लाएगा जिसके पास असीमित सामर्थ्य हे कोई राजनैतिक नेता या कोई बैज्ञानिक या कोई धर्म गुरु के बस की बात नहीं क्यूँ खुद वो स्थूल दुनिया मे स्थूल छीजो एकट्ठे करनेमे और मान शान मे पड़े हैं। आईए इस महान बदलाव और उसके असीम लाभ में भाग लेने का अवसर मत खोये।